लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव साथ कराने का सुझाव उचित: थम्बीदुरई
नई दिल्ली। लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सुझाव का समर्थन करते हुए लोकसभा उपाध्यक्ष एम थम्बीदुरई ने कहा कि दोनों चुनाव साथ साथ कराने से सरकारी खजाने पर अनावश्यक दबाव और प्रशासनिक बोझ को कम किया जा सकेगा तथा इससे बचाये धन का उपयोग सुशासन और जन कल्याण की योजनाओं के पोषण में हो सकेगा ।
थम्बीदुरई ने ‘लोकसभा एवं राज्य विधानसभा चुनाव साथ कराने का उपयुक्त समय’ शीर्षक से अपने लेख में कहा कि लगातार चुनाव कराने से सरकारी खजाने पर अनावश्यक दबाव पड़ता है तथा सरकार एवं चुनाव आयोग पर प्रशासनिक बोझ पड़ता है। भारत एक विकासशील देश है जहां व्यापक सामाजिक एवं आर्थिक असमानता है और बार बार होने वाले चुनाव में खर्च होने से बचाये गए धन का उपयोग इस असमानता को दूर करने में किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि बार बार चुनाव कराने में होने वाले वृहद खर्च, सरकार और चुनाव आयोग दोनों पर पड़ने वाले प्रशासनिक बोझ तथा सुशासन के अभाव में जो समस्याएं हमारे सामने पेश आ रही हैं, उससे उचित ढंग से निपटा जा सकता है, बशर्ते हम उस पुरानी चुनाव प्रणाली की ओर लौटें जिसका अनुसरण 1952, 1957, 1962 और 1967 में किया गया था...जब लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव साथ साथ कराये गए थे।
अन्नाद्रमुक सांसद ने कहा कि चुनाव में लोगों की बड़े पैमाने पर हिस्सेदारी देश की लोकतांत्रिक परंपराओं के प्रति भारतीयों की गहरी आस्था को प्रदर्शित करती है। देश में लगातार चुनाव पर बड़े पैमान पर होने वाले खर्च और इसके कुप्रभावों से लोगों को बोझिल करने की बजाए हमें लोगों की इस शुभेच्छा को सुशासन और जन कल्याण की योजनाओं के जरिये पोषित करना चाहिए।
उन्होंने लिखा कि चुनाव प्रचार के दौरान सामान्य नागरिकों का जीवन प्रभावित होता है। सभाओं में काफी संख्या में लोग जाते हैं जिसमें से खासतौर पर असंगठित क्षेत्र के लोग होते हैं और इसके कारण उनका कामकाज प्रभावित होता है। दूसरे शब्दों में कहें, तो अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है।
थम्बीदुरई ने कहा कि अक्सर चुनाव होने से विकास और आर्थिक वृद्धि प्रभावित होती है। ऐसे में लगातार होने वाले चुनाव को कम करने के रास्ते तलाशने की जरूरत है ताकि लोगों और सरकारी तंत्र को राहत मिल सके।
लोकसभा उपाध्यक्ष ने अपने लेख में कहा कि विधि आयोग ने चुनाव कानून सुधार पर 1999 में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा था कि विधानसभाओं के अलग अलग चुनाव कराया जाना ‘अपवाद’ होना चाहिए और इसे नियम नहीं बनाया जाना चाहिए।